नई दिल्ली
प्रोटीन सप्लिमेंट्स के ओवरडोज की वजह से एक युवक का हार्ट फेल होने की स्थिति में पहुंच गया है। उसका दिल मात्र 15 से 20 पर्सेंट ही काम कर रहा है। जबकि एक आम इंसान की हार्ट की क्षमता कम से कम 60 से 65 पर्सेंट होनी चाहिए। हालात यह है कि दवा के जरिए डॉक्टर उसके हार्ट को मेंटेन किए हुए हैं। उसकी जान बचाने के लिए हार्ट ट्रांसप्लांट ही एक मात्र इलाज है। डॉक्टर का कहना है कि अभी तक प्रोटीन का ओवरडोज किडनी को सबसे ज्यादा प्रभावित करते पाया गया है, लेकिन इस मामले में 35 साल के युवक के हार्ट फेल की मुख्य वजह सिंथेटिक प्रोटीन और अन्य सप्लिमेंट्स का ओवरडोज पाया गया है।
मणिपाल हॉस्पिटल के कार्डियोवॉस्कुलर सर्जन डॉ. युगल किशोर मिश्रा ने बताया कि जब मरीज उनके यहां इलाज के लिए पहुंचा तो उसे सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही थी। उसके चेहरे और पैरों पर सूजन आ गई थी। मरीज को आईसीयू में एडमिट कर पूरी जांच की गई तो पाया गया कि उसका सीवियर हार्ट फेल हुआ है। इसकी वजह डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी पाया गया। चिंता की बात यह थी कि उसका हार्ट केवल 15 से 20 पर्सेंट ही काम कर रहा था। जब हमने मरीज की हिस्ट्री पता की तो उसने बताया कि वह बॉडी बिल्डिंग का शौक रखता है और लंबे समय से जिम जाता है। इस दौरान वह सिंथेटिक प्रोटीन और अन्य सप्लिमेंट का लगातार इस्तेमाल कर रहा था।
डॉ. युगल ने कहा कि 30 से 35 साल के युवक में इस तरह का हार्ट फेल होना, कहीं न कहीं उसके द्वारा लंबे समय तक सिंथेटिक प्रोटीन का इस्तेमाल है। उन्होंने कहा कि जब कोई इंसान सिंथेटिक प्रोटीन लेता है तो प्रोटीन बॉडी के अंदर जाकर ब्रेक होता है, यानी टूटता है। जब यह प्रोटीन टूटता है तो इससे एमीनो एसिड बनता है। यही एसिड इंसान की हड्डी, मसल्स में जाता है और उसे रिपेयर करता है और इसकी वजह से मसल्स की ग्रोथ होती है, लेकिन, जब यह बहुत ज्यादा मात्रा में लिया जाता है तो यह एमीनो एसिड हार्ट के अंदर मौजूद माइक्रोफेजेज (जो ब्लड वेसेल्स की सफाई करता है) कहा जाता है, उस पर अटैक कर उसकी क्षमता को प्रभावित कर देता है।