देवास। ईद-उल-जुहा का पर्व कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते समाजजनों ने अपने-अपने घरों में मनाया। घरों में सभी ने ईद की नमाज अदा की। इधर शहर के दोनों का काजियो ने समाज के लोगों से अपील की है कि लोग अपने घरों में ईद मनाए और शासन की गाइडलाइन का पालन करें।वही मस्जिद में पांच-पांच लोगों ने नमाज अदा की।
मुसलमानों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस साल यह त्योहार भारत में 1 अगस्त को मनाया जाएगा। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा, ईद-उल-जुहा या बकरा ईद (Bakra Eid) के नाम से भी जानते हैं। इसे रमजान खत्म के करीब 70 दिनों के बाद मनाया जाता है। बकरा ईद पर कुर्बानी देने की प्रथा है
इस्लाम मजहब की मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी. कहा जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें और इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था।
कहते हैं कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को मारने वाले थे। उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया था। तभी से बकरा ईद अल्लाह में पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाई जाती है।
इस त्योहार को नर बकरे की कुर्बानी देकर मनाते हैं। इसे तीन भागों में बांटा जाता है, पहला भाग रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों और तीसरा परिवार के लिए होता है।