देवास। इस वर्ष रक्षा बंधन को लेकर संशय की स्तिथि बनी हुई है, पर्व कब और किस दिन मनाया जाए? धर्मशास्त्रों के जानकार मध्यप्रदेश ज्योतिष एवं विद्वत परिषद के अध्यक्ष आचार्य आनंद शंकर व्यास उज्जैन संपादक नारायण विजय पंचांग एवं महांकाल विजय पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व भद्रा रहित अपरान्ह व्यापिनी पूर्णिमा तिथि में मनाने की शास्त्र आज्ञा है। आचार्य पंडित भूपेन्द्र व्यास के मुताबिक इस वर्ष पूर्णिमा तिथि की स्थिति इस प्रकार है 11 अगस्त गुरुवार को पूर्णिमा प्रात: 10.39 बजे से शुरू होगी जो 12 अगस्त शुक्रवार को प्रात: 7.05 बजे तक रहेगी। 11 अगस्त को भद्रा का साया भी रहेगा। 11 अगस्त को भद्रा प्रात: 10.39 बजे से रात्रि 8.52 बजे तक रहेगी। इस इस प्रकार 11 अगस्त को अपरान्ह काल में पूर्णिमा तो रहेगी किंतु भद्रा के चलते रक्षाबंधन का पर्व रात्रि 8.52 के बाद ही मनाया जा सकेगा। 12 अगस्त उदय कालीन पूर्णिमा तिथि त्रिमुहुर्त (तीन मुहूर्त) से कम होने से पर्व 11 अगस्त को ही मनाया जाना धर्म व शास्त्र सम्मत भी है। सामान्यत: भद्रा को शुभ कार्यों में वर्जित किया गया है। भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा धर्मशास्त्रों की स्पष्ट मान्यता है कि श्रावणी अर्थात रक्षाबंधन व फाल्गुनी अर्थात होलिका दहन को भद्राकाल में वर्जित किया गया है। आचार्य व्यास ने बताया कि इस प्रकार की संशययुक्त स्तिथि के चलते रात्रि में निशीथ काल प्रारंभ होने के पूर्व प्रदोष काल में ही रक्षा पर्व मना लेना शास्त्र सम्मत रहेगा। आचार्य भूपेन्द्र व्यास ने यह भी बताया कि 11 अगस्त को मकर राशि का चन्द्रमा होने से पाताल लोक की भद्रा है। अत: यदि अति आवश्यक व अपरिहार्य कारण हो तो भद्रा का मुख छोडक़र भद्रा के पुच्छ काल अर्थात शाम 5.18 से 6.18 बजे तक श्री गणेशजी, शिवजी, कुलदेवी व अपने कुलदेवता को रक्षाबंधन कर पर्व मनाया जा सकता है। भद्रा के मुख काल में रक्षाबंधन कदापि नहीं करें। उचित यही होगा कि भद्रा रहित समय में ही रात्रि 8.52 के पश्चात अपनी अपनी कुल परम्परा के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाना शास्त्र सम्मत रहेगा।
जाने कौन भद्रा है भद्रा में शुभ कार्य क्यों नहीं कर सकते
मेरा नाम भद्रा है जो आप आजकल रक्षा बंधन को लेकर रोज अखबार और सोशल मीडिया पर पढ़ रहे होंगे। मेरे पिता सूर्यनारायण है और मेरी मां का नाम छाया है शनि और यमराज मेरे खास सगे भाई हैं जो व्यक्ति मेरे भद्रा काल में रक्षा बंधन होलिका दहन करेगा या कोई शुभ कार्य करेगा में उसके कार्य में विघ्न बाधा डालूंगी। भद्रा सूर्य भगवान की पुत्री हैं। सूर्य भगवान की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनि भगवान की सगी बहन हैं। भद्रा काले वर्ण, लंबे केश, बड़े दांत वाली तथा भयंकर रूप वाली कन्या है। इसका स्वभाव भी शनि की तरह ही कडक़ है। जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुंचाने लगी और मंगल कार्यों में उपद्रव करने लगी तथा सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी। ऐसा कहा जाता हैं की भद्रा के जन्म लेते ही उसने यज्ञ, मंगल कार्यो, ब्राह्मणों के अनुष्ठान में बाधा पहुंचाने लगी। भद्रा के इस व्यवहार को देखकर भगवान सूर्य ने भद्रा का विवाह करने का विचार किया परन्तु असफल रहे। सूर्य भगवान ने विवाह मंडप बनवाया पर भद्रा ने सब नष्ट कर दिए। भगवान सूर्यनारायण चिंताग्रस्त हो विचार करने लगे भद्रा का विवाह किस के साथ करू। प्रजा के दु:ख को देखकर ब्रह्माजी स्वयं सूर्य नारायण के पास आये और भद्रा के विषय में चिंता प्रकट की। भद्रा के दुष्ट स्वभाव को देखकर सूर्यदेव को उसके विवाह की चिंता होने लगी और वे सोचने लगे कि इस कन्या का विवाह कैसे होगा, सभी ने सूर्यदेव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। तब सूर्यदेव ने ब्रह्माजी से उचित परामर्श मांगा। ब्रह्माजी ने तब भद्रा से कहा कि- भद्रे! बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो तथा जो व्यक्ति भद्रा के दौरान विवाह संस्कार, मुण्डन संस्कार, गृह प्रवेश, यज्ञोपवित, यात्रा, त्योहार, नया कार्य, रक्षा बंधन मांगलिक कार्य करे, तो तुम उन्हीं में विघ्न डालो। जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना। इस प्रकार उपदेश देकर ब्रह्माजी अपने लोक चले गए। इसलिए भद्रा काल में कोई शुभ कार्य नहीं करने की परंपरा चली आ रही है।
इन कार्यों में भद्रा शुभ मानी गई है
अदालती कार्य, शत्रु पक्ष से मुकाबला, राजनीतिक कार्य, चिकित्सा ऑपरेशन आदि कार्यों के लिए,भद्रा शुभ होती है।